बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
उत्तर -
शंकर का ईश्वर विचार
शंकर के अनुसार ब्रह्म निर्गुण और निराकार है। ब्रह्म को जब हम विचार से जानने का प्रयास करते हैं तब वह ईश्वर हो जाता है। ईश्वर सगुण ब्रह्म है। ईश्वर सविशेष ब्रह्म भी कहा जाता है। ईश्वर सर्वज्ञ है। वह सर्वव्यापक है। वह स्वतंत्र है। वह एक है, वह अन्तर्यामी है। ईश्वर जगत् का सृष्टा, पालनकर्ता और संहारकर्ता है। वह नित्य और अपरिवर्तशील है। ब्रह्म का प्रतिबिम्ब जब माया में पड़ता है, तब वह ईश्वर हो जाता है। ईश्वर माया के द्वारा विश्व की सृष्टि करता है। माया ईश्वर की शक्ति है जिसके कारण वह विश्व का प्रपंच रचता है। ईश्वर विश्व का प्रथम कारण है, ऐसा श्रुतियों में कहा गया है। यद्यपि ईश्वर विश्व का कारण है फिर भी वह स्वयं अकारण है। यदि ईश्वर के कारण को माना जाय तो उसके कारण को मानना पड़ेगा। इस प्रकार अनवस्था दोष विकास होगा। इसलिये ईश्वर को कारण से शून्य माना गया हैं।
शंकर के अनुसार ईश्वर व्यक्तित्वपूर्ण है और वह उपासना का विषय है। ईश्वर ही व्यक्तियों को उनके शुभ और अशुभ कर्मों के आधार पर सुख-दुःख का वितरण करता है। ईश्वर कर्म फलदाता है। संसार के लोगों के भाग्य में जो विभिन्नता है, इसका कारण उनके पूर्ववर्ती जीवन का कर्म है। इस प्रकार ईश्वर नैतिकता का आधार है। ईश्वर स्वयं पूर्ण है। यह धर्म-अधर्म से परे है और वह एक है।
ईश्वर को विश्व का स्रष्टा माना जाता है। यहाँ प्रश्न उठता है कि ईश्वर विश्व की रचना किस प्रयोजन से करता है। यदि मान लिया जाय कि ईश्वर विश्व का निर्माण किसी उद्देश्य से करता है तो ईश्वर की पूर्णता का खंडन होगा। सृष्टि निर्माण ईश्वर का एक खेल है वह अपनी क्रीड़ा के लिए ही सृष्टि करता है। सृष्टि करना ईश्वर का स्वभाव है जिस प्रकार साँस लेना मानवीय स्वरूप का अंग है उसी प्रकार सृष्टि करना ईश्वरीय स्वभाव का अंग है।
ईश्वर विश्व का उपादान और निमित्त कारण दोनों है। वह स्वभावतः निष्क्रिय है परन्तु माया रहने के कारण वह सक्रिय हो जाता है। सृष्टिवाद के विरुद्ध में कहा जाता है कि ईश्वर को विश्व का कारण मानना भ्रान्तिमूलक है, क्योंकि कारण और कार्य के स्वरूप में अन्तर है। यदि ईश्वर विश्व कारण है तो फिर विश्व के स्वरूप और ईश्वर में अंतर क्यों है? शंकर इस कथन का उत्तर इस प्रकार देते हैं कि जिस प्रकार अचेतन वस्तु का विकास चेतन वस्तु से होता है। जैसे नाखून केश का विकास जिस प्रकार मनुष्य से होता है उसी प्रकार ईश्वर से जो पूर्णतः आध्यात्मिक है भौतिक वस्तु का निर्माण होता है। शंकर ने ईश्वर को विश्व में व्याप्त तथा विश्वातीत माना है। जिस प्रकार दूध में उजलापन अन्तर्भूत है उसी प्रकार ईश्वर विश्व में व्याप्त है। यद्यपि ईश्वर विश्व में व्याप्त है फिर भी वह विश्व की बुराइयों से प्रभावित नहीं होता है। ईश्वर विश्वातीत भी है। जिस प्रकार घड़ीसाज की सत्ता घड़ी से अलग रहती है उसी प्रकार ईश्वर विश्व का निर्माण कर अपना सम्बन्ध विश्व से विच्छिन्न कर विश्वातीत रहता है। शंकर के ईश्वर सम्बन्धी विचार और ब्रेडले के ईश्वर सम्बन्धी विचार में समरूपता है। ब्रेडले ने ईश्वर को ब्रह्म का विर्वत माना है। उसी प्रकार शंकर ने भी ईश्वर को ब्रह्म का विवर्त कहा है।
ईश्वर को सिद्ध करने के लिए जितने परम्परागत तर्क दिये गये हैं शंकर उन सबों की आलोचना करता है। तात्विक युक्ति हमें केवल ईश्वर के विचार को देती है, ईश्वर के वास्तविक अस्तित्व को नहीं। विश्व सम्बन्धी युक्ति हमें असीम सृष्टि का ससीम कारण दे सकती हैं। ससीम सृष्टि का ससीम कारण दे सकती है। ससीम स्रष्टि को भ्रष्टा मानना भ्रामक है। प्रयोजनमूलक तर्क से यह प्रमाणित होता है कि विश्व के जड़ में एक चेतन सत्ता का अस्तित्व है। लेकिन इससे यह नहीं प्रमाणित होता कि वह चेतन सत्ता ईश्वर है। शंकर ईश्वर के अस्तित्व को श्रुति के द्वारा प्रमाणित करते है। चूँकि श्रुति में ईश्वर की चर्चा है इसलिए ईश्वर का अस्तित्व है। शंकर का ईश्वर सम्बन्धी विचार काण्ट के ईश्वर संबंधी विचार से मिलता है। कान्ट ने भी ईश्वर के अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए दिये गये तर्कों की आलोचना करते हुए ईश्वर के प्रमाण का आधार विश्वास को मान लेता है। इसलिए डा. शर्मा ने कहा है "जिस प्रकार काण्ट विश्वास को ईश्वर का आधार मानता है उसी प्रकार शंकर श्रुति को ईश्वर का आधार मानता है।'दर्शनशास्त्र / 137 शंकर ने ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए परम्परागत तर्कों की आलोचना अवश्य करते है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं लगाना चाहिए कि शंकर ने ईश्वर के अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए युक्तियों का आश्रय नहीं लिया है, जो असंगत होगा। शंकर के दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व सम्बन्धी प्रमाणों की चर्चा हुई है। ऐसे प्रमाण मूलतः तीन हैं, जिनकी व्याख्या निम्न प्रकार से है-
1. विश्व एक कार्य है। प्रश्न यह है कि इस विशाल विश्व जिसमें कर्त्ता तथा भोक्ता निहित है का क्या कारण है? शंकर के मतानुसार ईश्वर जगत् का कारण है और स्वयं अकारण है। ईश्वर की उत्पत्ति किसी कारण से संभव नहीं है।
2. विश्व की ओर दृष्टिपात करने से सम्पूर्ण जगत् में एकता, सामंजस्य एवं व्यवस्था दिखायी देती है। विश्व की एकता एवं सामंजस्य मानवीय बुद्धि के द्वारा असोचनीय है। विश्व की व्यवस्था एवं सामंजस्य का कारण ईश्वर है।
3. ईश्वर जीवों को उसके पुण्य एवं पाप के अनुसार फल प्रदान करता है। ईश्वर कर्म फलदाता है। यह ईश्वर के अस्तित्व का नैतिक प्रमाण है। यहाँ पर यह कह देना प्रासंगिकं होगा कि यद्यपि शंकर ने ईश्वर के अस्तिव सम्बन्धी प्रमाणों की व्याख्या की है फिर भी उन प्रमाणों का शंकर के दर्शन में स्थान गौण है। शंकर ने बार-बार दोहराया है कि ईश्वरीय अस्तित्व को प्रमाणों से सिद्ध करना असंभव है। ईश्वर का अस्तित्व श्रुति से प्रमाणित होता है। तर्क श्रुति का सहायक है। तर्क का स्थान श्रुति से गौण है। अतः श्रुति ही ईश्वरीय अस्तित्व का आधार है।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- जैन दर्शन में जीव का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- सत्, रज और तम गुण किसे कहते हैं?
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- प्रश्न- सांख्य दर्शन के तत्व सम्बन्धी विचार लिखिए।
- प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
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- प्रश्न- योग के अष्टांग साधन बताइए।
- प्रश्न- योगांग किसे कहते हैं?
- प्रश्न- योग दर्शन के पाँच नियमों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- योग' से आप क्या समझते हैं? योग साधना के विभिन्न सोपानों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैराग्य क्या है? इसकी भेदों सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
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- प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये? तथा न्यायशास्त्र का प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमाण शास्त्र की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय तर्कशास्त्र में हेत्वाभास के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान' के स्वरूप और प्रकारो की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमा की परिभाषा दीजिए तथा उसके सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमाण की परिभाषा देते हुए प्रमाण के प्रमुख प्रकारों का विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अनुमान क्या है? परमार्थानुमान व स्मार्थानुमान को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
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- प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
- प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
- प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
- प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
- प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
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- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
- प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
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- प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
- प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
- प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
- प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
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- प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
- प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
- प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
- प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
- प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
- प्रश्न- चित्त क्या है?